Sakhi Mohan Sang Mouj Karen
फागुन का रंग सखि, मोहन सँग मौज करें फागुन में मोहन को घरवाली बना के, गीत सभी मिल गाएँ री, फागुन में पकड़ श्याम को गलियन डोलें, ताली दे दे नाच नचाएँ मस्ती को कोई न पार आज, फागुन में हम रसिया तुम मोहन गोरी, कैसी सुन्दर बनी रे जोरी जोरी को नाच नचाओ रे, […]
Tum Meri Rakho Laj Hari
शरणागति तुम मेरी राखौ लाज हरी तुम जानत सब अंतरजामी, करनी कछु न करी औगुन मोसे बिसरत नाहीं, पल-छिन घरी-घरी सब प्रपंच की पोट बाँधिकैं, अपने सीस धरी दारा-सुत-धन मोह लियो है, सुधि-बुधि सब बिसरी ‘सूर’ पतित को बेग उधारो, अब मेरी नाव भरी
Tan Ki Dhan Ki Kon Badhai
अन्त काल तन की धन की कौन बड़ाई, देखत नैनों में माटी मिलाई अपने खातिर महल बनाया, आपहि जाकर जंगल सोया हाड़ जले जैसे लकरि की मोली, बाल जले जैसे घास की पोली कहत ‘ कबीर’ सुनो मेरे गुनिया, आप मरे पिछे डूबी रे दुनिया
Ram Nam Ke Bina Jagat Main
राम आसरा राम नाम के बिना जगत में, कोई नहीं भाई महल बनाओ बाग लगाओ, वेष हो जैसे छैला इस पिजड़े से प्राण निकल गये, रह गया चाम अकेला तीन मस तक तिरिया रोवे, छठे मास तक भाई जनम जनम तो माता रोवे, कर गयो आस पराई पाँच पचास बराती आये, ले चल ले चल […]
Jo Bhaje Hari Ko Sada
हरि-भजन जो भजे हरि को सदा, सोई परमपद पायेगा देह के माला तिलक अरुछाप नहीं कुछ काम के प्रेम भक्ति के बिना नहीं, नाथ के मन भायेगा दिल के दर्पण को सफा कर, दूर कर अभिमान को शरण जा गुरु के चरण में, तो प्रभु मिल जायेगा छोड़ दुनियाँ के मजे सब, बैठकर एकांत में […]
Adhyatmik Jivan Ko Jiye
अध्यात्म चिंतन आध्यात्मिक जीवन को जीये, सुख शांति सुलभ होगी अपार धन दौलत अथवा विषय भोग की, लिप्सा में कोई न सार तृष्णा का अन्त नहीं आता, बेचैन सदा ही मन रहता संपत्ति सुखों के चक्कर में, आशाओं से मन नहिं भरता जहाँ ममता, चाह, अहं न रहे, निस्पृह होकर विचरण करते तब शांति सुलभ […]
Kaha Karun Vaikuntha Hi Jaaye
ब्रज महिमा कहा कँरू वैकुण्ठ ही जाये जहाँ नहिं नंद जहाँ न जसोदा, जहाँ न गोपी ग्वाल न गायें जहाँ न जल जमुना को निर्मल, जहँ नहिं मिले कदंब की छायें जहाँ न वृन्दावन में मुरली वादन सबका चित्त चुराये ‘परमानंद’ प्रभु चतुर ग्वालिनि, व्रज तज मेरी जाय बलाये
Chaitanya Swarup Hi Atma Hai
आत्मानुभूति चैतन्य स्वरूप ही आत्मा है यह शुद्ध देह का शासक है, अन्तःस्थित वही शाश्वत है आत्मा शरीर को मान लिया, मिथ्या-विचार अज्ञान यही यह देह मांसमय अपवित्र और नाशवान यह ज्ञान सही है इच्छाओं का तो अन्त नहीं, मन में जिनका होता निवास मृग-तृष्णा के ही तो सदृश, मानव आखिर होता निराश यह राग […]
Jo Kuch Hai Vah Parmeshwar Hai
तत्व चिंतन जो कुछ है वह परमेश्वर है वे जगत् रूप प्रकृति माया यदि साक्षी भाव से चिंतन हो मेरा पन तो केवल छाँया हम करें समर्पण अपने को, उन परमपिता के चरणों में और करें तत्व का जो विचार, सद्मार्ग सुलभ हो तभी हमें जो तत्व मसि का महावाक्य ‘वह तूँ है’ उनके सिवा […]
Din Dukhi Bhai Bahano Ki Seva Kar Lo Man Se
जनसेवा दीन दुःखी भाई बहनों की सेवा कर लो मन से प्रत्युपकार कभी मत चाहो, आशा करो न उनसे गुप्त रूप से सेवा उत्तम, प्रकट न हो उपकार बनो कृतज्ञ उसी के जिसने, सेवा की स्वीकार अपना परिचय उसे न देना, सेवा जिसकी होए सेवा हो कर्तव्य समझ कर, फ लासक्ति नहीं होए परहित कर्म […]