Ab Me Nachyo Bahut Gopal

मोह माया अब मैं नाच्यौ बहुत गोपाल काम क्रोध को पहिर चोलनो, कंठ विषय की माल महा मोह के नूपुर बाजत, निन्दा शबद रसाल भरम भर्यो मन-भयो पखावज, चलत कुसंगत चाल तृष्णा नाद करत घट भीतर, नाना विधि दे ताल माया को कटि फैंटा बाँध्यो, लोभ तिलक दियो भाल कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल […]

Kaha Kahati Tu Mohi Ri Mai

मनोवेग कहा कहति तू मोहि री माई नंदनँदन मन हर लियो मेरौ, तब तै मोकों कछु न सुहाई अब लौं नहिं जानति मैं को ही, कब तैं तू मेरे ढ़िंग आई कहाँ गेह, कहँ मात पिता हैं, कहाँ सजन गुरुजन कहाँ भाई कैसी लाज कानि है कैसी, कहा कहती ह्वै ह्वै रिसहाई अब तौ ‘सूर’ […]

Gwalin Jo Dekhe Ghar Aay

माखन चोरी ग्वालिन जो देखे घर आय माखन खाय चुराय श्याम तब, आपुन रही छिपाय भीतर गई तहाँ हरि पाये, बोले अपने घर मैं आयो भूल भई, गोरस में चींटी, काढ़न में भरमायो सुन-सुन वचन चतुर मोहन के, ग्वालिनि मुड़ मुसकानी ‘सूरदास’ प्रभु नटनागर की, सबै बात हम जानी

Jewat Kanh Nand Ik Thore

भोजन माधुरी जेंवत कान्ह नन्द इक ठौरे कछुक खात लपटात दोउ कर, बाल केलि अति भोरे बरा कौर मेलत मुख भीतर, मिरिच दसन टकटौरे तीछन लगी नैन भरि आए, रोवत बाहर दौरे फूँकति बदन रोहिनी ठाड़ी, लिए लगाइ अँकोरे ‘सूर’ स्याम को मधुर कौर दे, कीन्हे तात निहोरे

Dekhe Sab Hari Bhog Lagat

अन्नकूट देखे सब हरि भोग लगात सहस्र भुजा धर उत जेमत है, इन गोपन सों करत है बात ललिता कहत देख हो राधा, जो तेरे मन बात समात धन्य सबहिं गोकुल के वासी, संग रहत गोकुल के नाथ जेमत देख नंद सुख दीनों, अति प्रसन्न गोकुल नर-नारी ‘सूरदास’ स्वामी सुख-सागर, गुण-आगर नागर दे तारी

Palna Syam Jhulavati Janani

पलना पलना स्याम झुलावति जननी अति अनुराग ह्रदय में, गावति, प्रफुलित मगन होति नँद घरनी उमँगि- उमँगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी ‘सूरदास’ प्रभु मुदित जसोदा, पूरन भई पुरातन करनी

Braj Ke Birahi Log Dukhare

वियोग ब्रज के बिरही लोग दुखारे बिन गोपाल ठगे से ठाढ़े, अति दुरबल तनु कारे नन्द जसोदा मारग जोवत, नित उठि साँझ सकारे चहुँ दिसि ‘कान्ह कान्ह’ करि टेरत, अँसुवन बहत पनारे गोपी गाय ग्वाल गोसुत सब, अति ही दीन बिचारे ‘सूरदास’ प्रभु बिन यों सोभित, चन्द्र बिना ज्यों तारे

Main To Ta Din Kajara Dehon

श्री कृष्ण से प्रीति मैं तो ता दिन कजरा दैहौं जा दिन नंदनँदन के नैननि, अपने नैन मिलैहौं सुन री सखी, यही जिय मेरे, भूलि न और चितैहौं अब हठ ‘सूर’ यहै व्रत मेरौ विष खाकरि मरि जैहौ

Yadyapi Man Samujhawat Log

विरह व्यथा यद्यपि मन समुझावत लोग सूल होत नवनीत देखि कै, मोहन के मुख जोग प्रात-समय ही माखन रोटी, को बिन माँगे दैहे को मेरे बालक कुँवर कान्ह को, छन छन गोदी लैहे कहियौ जाय पथिक घर आवैं, राम स्याम दौउ भैया ‘सूर’ वहाँ कत होत दुखारी, जिनके मो सी मैया

Vilag Na Mano Udho Pyare

साँवरिया श्याम विलग न मानों ऊधो प्यारे वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवत ते कारे तुम कारे सुफलत सुत कारे, कारे मधुप भँवारे कमलनयन की कौन चलावै, साबहिनि ते अनियारे तातें स्याम भई कालिन्दी, ‘सूर’ स्याम गुन न्यारे