Gwalin Kar Te Kor Chudawat

बालकृष्ण लीला ग्वालिन कर ते कौर छुड़ावत झूठो लेत सबनि के मुख कौ, अपने मुख लै नावत षट-रस के पकवान धरे बहु, तामें रूचि नहिं पावत हा हा करि करि माँग लेत हैं, कहत मोहि अति भावत यह महिमा वे ही जन जानैं, जाते आप बँधावत ‘सूर’ श्याम सपने नहिं दरसत, मुनिजन ध्यान लगावत

Ja Par Dinanath Dhare

हरि कृपा जा पर दीनानाथ ढरै सोइ कुलीन, बड़ो सुन्दर सोई, जा पर कृपा करै रंक सो कौन सुदामा हूँ ते, आप समान करै अधिक कुरूप कौन कुबिजा ते, हरि पति पाइ तरै अधम है कौन अजामिल हूँ ते, जम तहँ जात डरै ‘सूरदास’ भगवंत-भजन बिनु, फिरि फिरि जठर परै

Dinan Dukh Haran Dev Santan Hitkari

भक्त के भगवान दीनन दुख हरन देव संतन हितकारी ध्रुव को हरि राज देत, प्रह्लाद को उबार लेत भगत हेतु बाँध्यो सेतु, लंकपुरी जारी तंदुल से रीझ जात, साग पात आप खात शबरी के खाये फल, खाटे मीठे खारी गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुःशासन चीर खस्यो सभा बीच कृष्ण कृष्ण, द्रौपदी पुकारी इतने हरि […]

Patit Pawan Virad Tumharo

विनय पतित पावन बिरद तुम्हारो, कौनों नाम धर्यौ मैं तो दीन दुखी अति दुर्बल, द्वारै रटत पर्यौ चारि पदारथ दिये सुदामहि, तंदुल भेंट धर्यौ द्रुपद-सुता की तुम पत राखी, अंबर दान कर्यौ संदीपन को सुत प्रभु दीने, विद्या पाठ कर्यौ ‘सूर’ की बिरियाँ निठुर भये प्रभु, मेरौ कछु न सर्यौ

Bujhat Shyam Kon Tu Gori

राधा कृष्ण भेंट बूझत श्याम कौन तूँ गोरी कहाँ रहति काकी है बेटी, देखी नहीं कहूँ ब्रज खोरी काहे को हम ब्रजतन आवति, खेलति रहति आपनी पोरी सुनति रहति श्रवननि नंद ढोटा, करत रहत माखन दधि-चोरी तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं, खेलन चलो संग मिलि जोरी ‘सूरदास’ प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भुरइ राधिका भोरी

Main Jogi Jas Gaya Bala

शिव द्वारा कृष्ण दर्शन मैं जोगी जस गाया बाला, मैं जोगी जस गाया तेरे सुत के दरसन कारन, मैं काशी तज आया पारब्रह्म पूरन पुरुषोत्तम, सकल लोक जाकी माया अलख निरंजन देखन कारन, सकल लोक फिर आया जो भावे सो पावो बाबा, करो आपुनी दाया देउ असीस मेरे बालक को, अविचल बाढ़े काया ना लेहौं […]

Mohi Kahat Jubati Sab Chor

चित चोर मोहिं कहति जुवति सब चोर खेलत कहूँ रहौं मैं बाहिर, चितै रहतिं सब मेरी ओर बोलि लेहिं भीतर घर अपने, मुख चूमति भर लेति अँकोर माखन हेरि देति अपने कर, कई विधि सौं करति निहोर जहाँ मोहिं देखति तँहै टेरति, मैं नहिं जात दुहाई तोर ‘सूर’ स्याम हँसि कंठ लगायौ, वे तरुनी कहँ […]

Va Patpit Ki Fahrani

प्रतिज्ञा पालन वा पटपीत की फहरानि कर धरि चक्र चरन की धावनि, नहिं बिसरति वह बानि रथ तें उतरि अवनि आतुर ह्वै, कच रज की लपटानि मानौं सिंह सैल ते निकस्यौ, महामत्त गज जानि जिन गुपाल मेरो प्रन राख्यौ, मेटि वेद की कानि सोई ‘सूर’ सहाय हमारे, निकट भये हैं आनि

Soi Rasna Jo Hari Gun Gawe

हरि भक्ति सोइ रसना जो हरि गुन गावै नैनन की छबि यहै चतुरता, जो मुकुन्द-मकरन्दहिं ध्यावै निरमल चित तो सोई साँचो, कृष्ण बिना जिहिं और न भावै श्रवननि की जु यहै अधिकाई, सुनि हरि-कथा सुधारस पावै कर तेई जो स्यामहिं सैवै, चरननि चलि वृन्दावन जावै ‘सूरदास’ जैयै बलि ताके, जों हरि जू सों प्रीति बढ़ावै

Hari Hari Hari Hari Sumiran Karo

नाम स्मरण हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ, हरि-चरनार-विंद उर धरौ हरि की कथा होइ जब जहाँ, गंगा हूँ चलि आवै तहाँ जमुना सिन्धु सरस्वति आवैं, गोदावरी विलम्ब न लावैं सर्व-तीर्थ को वासा तहाँ, ‘सूर’ हरि-कथा होवै जहाँ