Dhuri Bhare Ati Shobhit Shyam Ju
श्री बालकृष्ण माधुर्य धूरि-भरे अति शोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी खेलत-खात फिरै अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछौटी वा छबि को रसखानि बिलोकत, बारत काम कलानिधि कोटी काग के भाग कहा कहिए हरि, हाथ सों लै गयो माखन रोटी शेष, महेश, गनेश, दिनेस, सुरेशहु जाहि निरन्तर गावैं जाहि अनादि अखण्ड अछेद, अभेद सुवेद […]