Braj Me Aaj Sakhi Dekhyo Ri Tona

श्याम का जादू ब्रज में आज सखी देख्यो री टोना ले मटकी सिर चली गुजरिया, आगे मिले बाबा नंद का छोना दधि को नाम बिसरि गयो प्यारी, ले लेहुरी कोउ स्याम सलोना वृन्दावन की कुंज गलिन में, आँख लगाय गयो मन-मोहना ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुन्दर श्याम सुधर रस लोना

Main To Tore Charan Lagi Gopal

शरणागत मैं तो तोरे चरण लगी गोपाल जब लागी तब कोउ न जाने, अब जानी संसार किरपा कीजौ, दरसण दीजो, सुध लीजौ तत्काल ‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कमल बलिहार

Shyam Mohi Mat Tarsavo Ji

विरह व्यथा श्याम मोहि मत तरसावोजी तुम्हरे कारन सब सुख छोड्या, अब क्यूँ देर लगावोजी विरह विथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावोजी अब मत छोड़ो मोहि प्रभुजी, हँस कर तुरत बुलावोजी ‘मीराँ’ दासी जनम-जनम की, अंग से अंग मिलावोजी

Kanha Thari Jowat Rah Gai Baat

विरह व्यथा कान्हा! थारी जोवत रह गई बाट जोवत-जोवत इक पग ठाढ़ी, कालिन्दी के घाट छल की प्रीति करी मनमोहन, या कपटी की बात ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, ब्रज को कियो उचाट

Jhumat Radha Sang Giridhar

होली झूमत राधा संग गिरिधर, झूमत राधा संग अबीर, गुलाल की धूम मचाई, उड़त सुगंधित रंग लाल भई वृन्दावन-जमुना, भीज गये सब अंग नाचत लाल और ब्रजनारी, धीमी बजत मृदंग ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, छाई बिरज उमंग

Patiyan Main Kaise Likhu Likhi Hi Na Jay

विरह व्यथा पतियाँ मैं कैसे लिखूँ, लिखि ही न जाई कलम धरत मेरो कर कंपत है, हियड़ो रह्यो घबराई बात कहूँ पर कहत न आवै, नैना रहे झर्राई किस बिधि चरण कमल मैं गहिहौं, सबहि अंग थर्राई ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेगि मिल्यो अब आई

Braj Main Kanha Dhum Machai

होली ब्रज में कान्हा धूम मचाई, ऐसी होरी रमाई इतते आई सुघड़ राधिका, उतते कुँवर कन्हाई हिलमिल के दोऊ फाग रमत है, सब सखियाँ ललचाई, मिलकर सोर मचाई राधेजी सैन दई सखियन के, झुंड-झुंड झट आई रपट झपट कर श्याम सुन्दर कूँ, बैयाँ पकड़ ले जाई, लालजी ने नाच नचाई मुरली पीताम्बर छीन लियो है, […]

Main To Mohan Rup Lubhani

रूप लुभानी मैं तो मोहन रूप लुभानी सुंदर वदन कमल-दल लोचन, चितवन की मुसकानी जमना के नीर तीरे धेनु चरावै, मुरली मधुर सुहानी तन मन धन गिरिधर पर वारूँ, ‘मीराँ’ पग लपटानी

Sakhi Meri Nind Nasani Ho

विरह व्यथा सखी, मेरी नींद नसानी हो पिव को पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो सखियन मिल कर सीख दई मन, एक न मानी हो बिन देख्याँ कल नाहिं पड़त, जिय ऐसी ठानी हो अंग-अंग व्याकुल भये मुख ते, पिय पिय बानी हो अंतर-व्यथा विरह की कोई, पीर न जानी हो चातक जैहि विधि रटे […]

Koi Kahiyo Re Prabhu Aawan Ki

विरह व्यथा कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मन भावन की आप न आवै, लिख नहिं भेजै, बान पड़ी ललचावन की ए दोऊ नैन कह्यो नहिं माने, नदियाँ बहे जैसे सावन की कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो, पाँख नहीं उड़ जावन की ‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भई तेरे दामन […]