Mai Ri Main To Liyo Govind Mol
अनमोल गोविंद माई री मैं तो लियो री गोविन्दो मोल कोई कहै छाने, कोई कहै चोरी, लियो री बजंताँ ढोल कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अखियाँ खोल कोई कहै महँगो कोई कहै सस्तो, लियो री अमोलक मोल तन का गहणाँ सब ही दीना, दियो री बाजूबँद खोल ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, […]
Mhari Sudh Kripa Kar Lijo
शरणागति म्हारी सुध किरपा कर लीजो पल पल ऊभी पंथ निहारूँ, दरसण म्हाने दीजो मैं तो हूँ बहु ओगुणवाली, औगुण सब हर लीजो मैं दासी थारे चरण-कँवल की, मिल बिछड़न मत कीजो ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरणाँ में लीजो
Swami Sab Sansar Ka Ji Sancha Shri Bhagwan
संसार के स्वामी स्वामी सब संसार का जी, साँचा श्री भगवान दान में महिमा थाँरी देखी, हुई हरि मैं हैरान दो मुठ्ठी चावल की फाँकी, दे दिया विभव महान भारत में अर्जुन के आगे, आप हुया रथवान ना कोई मारे, ना कोई मरतो, यो कोरो अज्ञान चेतन जीव तो अजर अमर है, गीताजी को ज्ञान […]
Chalo Re Man Jamna Ji Ke Tir
यमुना का तीर चलो रे मन जमनाजी के तीर जमनाजी को निरमल पाणी, सीतल होत शरीर बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लिये बलबीर मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुण्डल झलकत हीर मीराँ के प्रभु गिरिधर नागर, चरण-कँवल पर सीर
Thane Kai Kai Samjhawan
विरह व्यथा थाने काँईं काँईं समझाँवा, म्हारा साँवरा गिरधारी पुरब जनम की प्रीत हमारी, अब नहीं जाय बिसारी रोम रोम में अँखियाँ अटकी, नख सिख की बलिहारी सुंदर बदन निरखियो जब ते, पलक न लागे म्हाँरी अब तो बेग पधारो मोहन, लग्यो उमावो भारी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, सुधि लो तुरत ही म्हारी
Pyari Darsan Dijyo Aay
विरह व्यथा प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय जल बिन कमल, चंद बिन रजनी, ऐसे तुम देख्या बिन सजनी आकुल-व्याकुल फिरूँ रैन-दिन, विरह कलेजो खाय दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूँ कथत न आवै बैना कहा कहूँ कछु कहत न आवे, मिलकर तपत बुझाय क्यूँ तरसाओ अंतरजामी, आय मिलो किरपा […]
Meera Magan Hari Ke Gun Gay
मग्न मीरा मीराँ मगन हरि के गुण गाय साँप-पिटारा राणा भेज्या, मीराँ हाथ दियो जाय न्हाय धोय जब देखण लागी, सालिगराम गई पाय जहर को प्याला राणाजी भेज्या, अमृत दियो बनाय न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अँचाय सूल सेज राणाजी भेजी, दीज्यो मीराँ सुलाय साँझ भई मीराँ सोवण लागी, मानो फूल बिछाय […]
Mhare Ghar Aao Pritam Pyara
आओ प्रीतम म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा, जग तुम बिन लागे खारा तन-मन धन सब भेंट धरूँगी, भजन करूँगी तुम्हारा तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये, मोमें औगुण सारा मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूँ, ये सब बगसण हारा ‘मीराँ’ कहे प्रभु कब रे मिलोगे, तुम बिन नैण दुखारा
Sanwara Mhari Prit Nibhajyo Ji
शरणागति साँवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी थें छो सगला गुण रा सागर, म्हारा औगुण थे बिसराज्यो जी लोक न धीजै, मन न पतीजै, मुखड़े शब्द सुणाज्यो जी दासी थारी जनम-जनम री, म्हारै आँगण आज्यो जी ‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी