Deh Dhara Koi Subhi Na Dekha
दुःखी दुनिया देह धरा कोई सुखी न देखा, जो देखा सो दुखिया रे घाट घाट पे सब जग दुखिया, क्या गेही वैरागी रे साँच कहूँ तो कोई न माने, झूट कह्यो नहिं जाई रे आसा तृष्णा सब घट व्यापे, कोई न इनसे सूना रे कहत ‘कबीर’ सभी जग दुखिया, साधु सुखी मन जीता रे
Ham To Ek Hi Kar Ke Mana
आत्म ज्ञान हम तो एक ही कर के माना दोऊ कहै ताके दुविधा है, जिन हरि नाम न जाना एक ही पवन एक ही पानी, आतम सब में समाना एक माटी के लाख घड़े है, एक ही तत्व बखाना माया देख के व्यर्थ भुलाना, काहे करे अभिमाना कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, हम हरि हाथ […]
Pani Main Min Piyasi Re
आत्म ज्ञान पानी में मीन पियासी रे, मोहे सुन-सुन आवे हाँसी रे जल थल सागर पूर रहा है, भटकत फिरे उदासी रे आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोऊ मथुरा, कोई कासी रे गंगा और गोदावरी न्हाये, ज्ञान बिना सब नासी रे कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सहज मिले अविनासी रे
He Antaryami Prabho
हितोपदेश हे अंतर्यामी प्रभो, आत्मा के आधार तो तुम छोड़ो हाथ तो, कौन उतारे पार आछे दिन पाछे गये, हरि से किया न हेत अब पछताये होत क्या, चिड़िया चुग गई खेत ऊँचे कुल क्या जनमिया, करनी ऊँच न होई सुवरन कलस सुरा भरा, साधू निन्दे सोई ऐसी बानी बोलिये, मन का आपा खोय औरन […]
Ab Odhawat Hai Chadariya Vah Dekho Re Chalti Biriya
अंतिम अवस्था अब ओढ़ावत है चादरिया, वह देखो रे चलती बिरिया तन से प्राण जो निकसन लागे, उलटी नयन पुतरिया भीतर से जब बाहर लाये, छूटे महल अटरिया चार जने मिल खाट उठाये, रोवत चले डगरिया कहे ’कबीर’ सुनो भाई साधो, सँग में तनिक लकड़िया
Pritam Aaye Pritam Aaye Aaj Mere Ghar Pritam Aaye
हरि दर्शन प्रीतम आए प्रीतम आये, आज मेरे घर प्रीतम आये रहत रहत मैं अँगना बुहारूँ, मोतियाँ माँग भराऊँ, भराऊँ चरण पखार देख सुख पाऊँ, सब साधन बरसाऊँ पाँच सखी मिल मंगल गाये, राग सरस मैं गाऊँ करूँ आरती, प्रेम निछावर, पल-पल मैं बलि जाऊँ कहे ‘कबीर’ धन भाग हमारा, परम पुरुष वर पाऊँ
Uth Jaag Musafir Bhor Bhai
चेतावनी उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो सोवत है जो सोवत है सो खोवत है, जो जागत है सो पावत है अब नींद से अँखियाँ खोल जरा, ओ बेसुध प्रभु से ध्यान लगा यह प्रीति करन की रीति नहीं, सब जागत है तू सोवत है नादान, भुगत करनी अपनी, ओ पापी पाप […]
Ab Tum Kab Simaroge Ram
हरिनाम स्मरण अब तुम कब सुमरो गे राम, जिवड़ा दो दिन का मेहमान गरभापन में हाथ जुड़ाया, निकल हुआ बेइमान बालापन तो खेल गुमाया, तरूनापन में काम बूढ़ेपन में काँपन लागा, निकल गया अरमान झूठी काया झूठी माया, आखिर मौत निदान कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, क्यों करता अभिमान
Bhajo Re Bhaiya Ram Govind Hari
हरि कीर्तन भजो रे भैया राम गोविन्द हरी जप तप साधन कछु नहिं लागत, खरचत नहिं गठरी संतति संपति सुख के कारण, जासे भूल परी कहत ‘कबीर’ राम नहिं जा मुख, ता मुख धुल भरी
Karam Gati Tare Nahi Tari
कर्म विपाक करम गति तारे नाहिं टरी मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सोध के लगन धरी सीता हरण, मरण दशरथ को, वन में विपति परी नीच हाथ हरिचन्द बिकाने, बली पताल धरी कोटि गाय नित पुण्य करत नृग, गिरगिट जोनि परी पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर विपति परी दुर्योधन को गर्व घटायो, जदुकुल नाश […]