भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम
भरत की व्यथा
जननी मैं न जीऊँ बिन राम
राम लखन सिया वन को सिधाये, राउ गये सुर धाम
कुटिल कुबुद्धि कैकेय नंदिनि, बसिये न वाके ग्राम
प्रात भये हम ही वन जैहैं, अवध नहीं कछु काम
‘तुलसी’ भरत प्रेम की महिमा, रटत निरंतर नाम