प्रबोधन
छाड़ि मन, हरि-विमुखन को संग
जिनके संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग
कहा होत पय-पान कराए, विष नहिं तजत भुजंग
कागहिं कहा कपूर चुगाए, स्वान न्हवाए गंग
खर कौं कहा अरगजा-लेपन मरकट भूषन अंग
गज कौं कहा सरित अन्हवाए, बधुरि धरै वह ढंग
पाहन पतित बान नहिं बेधत, रीतो करत निषंग
‘सूरदास’ कारी कामरि पै, चढ़त न दूजौ रंग
Thanks.
I want it’s meaning
परम सत्य, परन्तु आज कल के शिक्षित मूर्ख नहीं समझ सकते