ब्रह्ममय जगत्
सर्वत्र ब्रह्म की सत्ता ही
यह जगत् जीव के ही सदृश, है अंश ब्रह्म का बात यही
माया विशिष्ट हो ब्रह्म जभी, तब वह ईश्वर कहलाता है
ईश्वर, निमित्त व उपादान से दृश्य जगत् हो जाता है
जिस भाँति बीज में अंकुर है, उस भाँति ब्रह्म में जग भी है
सो जीव, सृष्टि, स्थिति व नाश, सब ही तो ब्रह्म के आश्रित है
यह जीव, जगत्, ईश्वर हमको, जो भिन्न दिखाई देते हैं
पर ब्रह्म ज्ञान हो जाने पर, ये भेद सभी मिट जाते हैं