गोपियों का वियोग
संदेशा, श्याम का लेकर, उधोजी ब्रज में आये हैं
कहा है श्यामसुन्दर ने गोपियों दूर मैं नहीं हूँ
सभी में आत्मवत् हूँ मैं, चेतना मैं ही सबकी हूँ
निरन्तर ध्यान हो मेरा, रखो मन पास में मेरे
वृत्तियों से रहित होकर, रहोगी तुम निकट मेरे
गोपियों ने कहा ऊधो, सिखाते योग विद्या अब
मिलें निर्गुण से कैसे हम, ज्ञान की व्यर्थ बातें सब
उधोजी! सुधा अधरों की पिलाई, हम को प्यारे ने
संग में रासलीला की, लगीं फिर बिलख कर रोने
कहा फिर श्याम की चितवन, सभी को वश में करतीं है
चुराया चित्त हम सबका, नहीं हम भूल सकतीं है
चढ़ाई सिर पे उद्धव ने, चरण-रज गोपियों की है
सुनाई श्याम को जाके, दशा जो गोपियों की है