विपदा की चाह
विपदा माँगू मैं गिरिधारी
कुन्ती देवी कहे आपने, कई आपदा टारी
शत-शत करूँ प्रणाम अकिंचन, हूँ अबोध मैं नारी
लाक्षा-गृह अग्नि, हिडिम्ब से रक्षा की असुरारी
दुर्वासा भोजन को आये तब भी विपद् निवारी
तृप्त किया उनको विश्वम्भर, बची द्रोपदी प्यारी
दुष्ट दुशासन ने खीचीं थी, पुत्र-वधू की सारी
लियो वस्त्र अवतार, द्वारिकानाथ श्याम रखवारी
द्रोण, भीष्म से महारथी थे, भारत युद्ध मझारी
पार्थसारथी हुए आप तो, हो गई जीत हमारी
अश्वत्थामा ने छोड़ा जब, ब्रह्म-अस्त्र अति भारी
पाण्डव कुल का वंश बचाया, चक्र-सुदर्शनधारी
कई बार गोविन्द आपने, कष्ट हरा था भारी
हो अनन्य गति आप हमारी, हे श्रीकृष्ण मुरारी