भक्ति-भाव
मानव का तन जिनसे पाया, उन राम कृष्ण की भक्ति हो
आसक्ति त्याग कर दुनिया की, करुणानिधि में अनुरक्ति हो
श्रीरामचरितमानस हमको, भक्ति की समुचित शिक्षा दे
नवधा भक्ति के जो प्रकार, अनुगमन करें प्रभु शक्ति दे
सत्संग तथा हरिकथा सुने, गुरुसेवा प्रभु गुणगान करें
हो आस्था प्रभु का मंत्र जपें, इन्द्रिय -निग्रह, सत्कर्म करें
प्रभु के ही रूप में संत बड़े, उनका ही हृदय से करें मान
जो मिले उसी में हो राजी, औरों में त्रुटि का हो न भान
निष्कपट रहे बर्ताव सदा, सुख दुख में भी समदृष्टि हो
आवश्यकीय कीर्तन कलि में, श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन ही हो

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