भजनगोविन्दम्
भज गोविन्दम्, भज गोविन्दम्, गोविन्दम् भज मूढ़मते
मैं, तूँ कौन कहाँ से आया, कौन पिता, पत्नी और जाया
माया मोह ने जाल बिछाया, जिसमें फँसकर तूँ भरमाया
खेल, पढ़ाई, यौवन-मद में, गई उम्र चिन्ता अब मन में
खो न समय संपत्ति संचय में, त्याग लोभ, तोष कर मन में
विद्या का अभिमान त्याग रे, भक्तिभाव में चित्त लगा रे
अन्तर्मन से श्याम पुकारे, दौड़े आये श्याम सँवारे
पूछें जब तक करे कमाई, वृद्ध हुआ सुधि ले नहीं कोई
आखिर अंत घड़ी भी आई, सारी उम्र व्यर्थ ही खोई
प्रतिदिन बीता साँझ सबेरा, जरा अवस्था ने आ घेरा
क्या करता यह तेरा मेरा, अपने मन को क्यों नहीं हेरा
विषय भोग में जीवन हारा, कर्तव्य जो भी कुछ नहीं विचारा
शव को देख डरे प्रिय दारा, झूठा है संसार पसारा
जगत् देखकर तू हरषाया, राग द्वेष में जीवन खोया
कृष्ण नाम को है बिसराया, अंत समय श्मशान में सोया
मानव जीवन है क्षण-भंगुर, फिर भी गर्व करे तन ऊपर
जन्म मरण का है यह चक्कर, करे शोक तू क्यों बिछुड़े पर
जो गंगा-जल कणिका पीता, कृष्णार्चन जीवन में करता
परहित में जो समय लगाता, यम से तो फिर क्यों कर डरता
गीता-ज्ञान हृदय में धरले, विष्णु-सहस्त्र नाम को जपले
गुरु-पद की जो सेवा करले, निश्चय ही भवसागर तर ले