मोहन की मुरली
बंशी साधारण वाद्य नहीं
प्राणों व साँसों से बजता, अनुपम ऐसा है वाद्य यही
जब बंसी बजाते श्रीकृष्ण, आनन्द उसी में भर देते
पशु पक्षी भी तब स्थिर हों, सुनने को कान लगा देते
अश्चर्य चकित ऋषि-मुनि होते, तब भंग समाधि हो जाती
रोमांच गोपियों को होता, घर से तत्काल निकल पड़ती
उस ओर दौड़ती जाती हैं, जिस ओर से वंशी ध्वनि आती
मोहन की मोहिनी यह वंशी, अपने वश में सबको करती