हरि से प्रीति
प्रभु से प्रीति बढ़ायें
मुरलीधर की छटा मनोहर, मन-मंदिर बस जाये
माया मोह कामनाओं का, दृढ़ बंधन कट जाये
सब सम्बन्धी सुख के संगी, कोई साथ न आये
संकट ग्रस्त गजेन्द्र द्रौपदी, हरि अविलम्ब बचाये
भजन कीर्तन नंद-नन्दन का, विपदा दूर भगाये
अन्त समय जो भाव रहे, चित वैसी ही गति पाये
हरि भक्ति ही साधन जो तब, विपदा कष्ट दुराये