नर्मदा वंदन
पतित पावनि नर्मदे, भव-सिन्धु से माँ तार दे
जो यश बखाने आपका, आगम, निगम, सुर, शारदे
फोड़कर पाताल, तुम बह्ती धुआँ की धार दे
है नाव मेरी भँवर में, अब पुण्य की पतवार दे
बज रहे नूपुर छमाछम, ज्यों बँधे हो पाँव में
मंद कल-कल गुँजता, स्वर पंथ के हर गाँव में
सतपुड़ा एवं विन्ध्याचल को सौंप कर वन-संपदा
मालवा को उर्वरा कर, हरती सब की आपदा
तट पे तेरे भृगु-मुनि संतों ने करके तप घना
दे दिया देवत्व हर कंकड़ को शंकर सा बना