रास लीला
आज हरि अद्भुत रास रचायो
एक ही सुर सब मोहित कीन्हे, मुरली नाद सुनायो
अचल चले, चल थकित भये सबम मुनि-जन ध्यान भुलायो
चंचल पवन थक्यो नहि डोलत, जमुना उलटि बहायो
थकित भयो चंद्रमा सहित मृग, सुधा-समुद्र बढ़ायो
‘सूर’ श्याम गोपिन सुखदायक, लायक दरस दिखायो