चेतावनी
तूँ सो रहा अब तक मुसाफिर, जागता है क्यों नहीं
था व्यस्त कारोबार में,अब भोग में खोया कहीं
मोहवश जैसे पतिंगा, दीपक की लौ में जल मरे
मतिमान तूँ घर बार में फिर, प्रीति इतनी क्यों करे
लालच में पड़ता कीर ज्यों, पिंजरे में उसका हाल ज्यों
फिर भी उलझता जा रहा, संसार माया जाल क्यों
भगवान का आश्रय ग्रहण जग से नाता तोड़ दें
प्राणियों के वे सुहद, भव-निधि से तुझको तार दे