प्राणोत्सर्ग
जो प्राण त्यागे धर्म हित, वह सद्गति को प्राप्त हो
सम्राट नामी थे दिलीप, गौ-नन्दिनी भयग्रस्त थी
दबोच रक्खा था उसे बली सिंह ने, संकट में थी
तब गौ की रक्षा हेतु से, महाराज बोले सिंह को
अपनी क्षुधा को शान्त कर, खा ले तूँ मेरी देह को
गौ कामधेनु की सुता थी, जिसको न डर था सिंह का
बोली तभी महाराज तुमको, सुख मिले सन्तान का
महाराज शिवि को गोद में, डर कर कबूतर आ गया
कुछ क्षणों में बाज उसको, मारने भी आ गया
बोला कि यह आहार मेरा, छोड़ दो राजन इसे
अपने ही तन का मांस, शिवि देने लगे तत्पर उसे
ये इन्द्र अग्नि देव ही थे, पक्षियों के रूप में
होकर प्रकट आशीष दी, वापस गये फिर स्वर्ग में

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *