पाखण्ड
जीवन स्वयं का तो मलिन, उत्सुक हमें उपदेश दे
यह तो विरोधाभास है उनमें अहं भरपूर है
अन्त:करण से तो कुटिल, सत्कर्म का पर ज्ञान दे
यह ढोंगियों का आचरण, विश्वास उस पर क्यों करें
जो भक्ति का प्रतिरोध करते, मुक्ति का निर्देश दे
अनभिज्ञ वे तो शास्त्र से, सद्ज्ञान से कोसो परे
साधन भजन करते नहीं, संसार-सुख में ही फँसे
बातें करे वेदान्त की, वे तो उपेक्षा योग्य है
कर्तव्य यह कलिकाल में, सत्संग व स्वाध्याय हो
इस भाँति सद्गुण हो सुलभ, सत्कर्म ही सन्मार्ग है