लाला की करतूत
जसोदा! कहा कहों हौं बात
तुम्हरे सुत के करतब मोसे, कहत कहे नहिं जात
भाजन फोरि, ढोलि सब गोरस, ले माखन-दधि खात
जो बरजौं तो आँखि दिखावै, रंचु-नाहिं सकुचात
और अटपटी कहलौं बरनौ, छुवत पान सौं गात
दास ‘चतुर्भुज’ गिरिधर-गुन हौं, कहति कहति सकुचात