श्रीकृष्ण प्राकट्य
गोकुल में बाजत अहा बधाई
भीर भई नन्दजू के द्वारे, अष्ट महासिद्धि आई
ब्रह्मादिक रुद्रादिक जाकी, चरण-रेनु नहीं पाई
सो ही नन्दजू के पूत कहावत, कौतुक सुन मोरी माई
ध्रुव, अमरीष, प्रह्लाद, विभीषण, नित-नित महिमा गाई
सो ही हरि ‘परमानँद’ को ठाकुर, ब्रज प्रसन्नता छाई