राम स्मरण
चपल मन सुमिरो अवध किशोर
चन्द्रवदन राजीव नयन प्रभु, करत कृपा की कोर
मेघ श्याम तन, पीत वसन या छबि की ओर ने छोर
शीश मुकुट कानों में कुण्डल, चितवनि भी चितचोर
धनुष बाण धारे प्रभु कर में, हरत भक्त भय घोर
चरण-कमल के आश्रित मैं प्रभु, दूजो कोई न मोर