सत्संग की महिमा
आसक्ति जगत् की नष्ट करें, खुल जाता है मुक्ति का द्वार
स्वाध्याय, सांख्य व योग, त्याग, प्रभु को प्रसन्न उतने न करें
व्रत, यज्ञ, वेद या तीर्थाटन, यम, नियम, प्रभु को वश न करें
तीनों युग में सत्संग सुलभ, जो करे प्रेम से नर नारी
यह साधन श्रेष्ठ सुगम निश्चित, दे पूर्ण शांति व दुख-हारी
आत्म स्वरूप है नारायण, हम शरण उन्हीं की ग्रहण करें
एकमात्र भाव बस प्रभु का हो, तो वही परमपद प्राप्त करे