श्रीकृष्ण प्राकट्य
आजु सखी, नँद-नंदन प्रगटे, गोकुल बजत बधाई री
कृष्णपक्ष की अष्टमी भादौ, योग लग्न घड़ी आई री
गृह-गृह ते सब बनिता आई, गावत गीत बधाई री
जो जैसे तैसे उठि धाई, आनन्द उर न समाई री
चौवा चन्दन और अरगजा, दधि की कीच मचाई री
बन्दीजन सुर नर गुन गावें, शोभा बरनि न जाई री
‘चन्द्रसखी’ भज बालकृष्ण छबि, चरन कमल चित लाई री