प्रभाती
अब जागो मोहन प्यारे, तुम जागो नन्द दुलारे
हुआ प्रभात कभी से लाला, धूप घरों पर छाई
गोपीजन आतुरतापूर्वक, तुम्हें देखने आर्इं
ग्वाल-बाल सब खड़े द्वार पर, कान्हा ली अँगड़ाई
गोपीजन सब मुग्ध हो रहीं, निरखें लाल कन्हाई
जसुमति मैया उठा लाल को, छाती से लिपटाये
चन्द्रवदन को धुला तभी, माँ मक्खन उसे खिलाये