दर्शन की प्यास
दर्शन की प्यासी मोहन! आई शरण तुम्हारी
रस प्रेम का लगा के, हमको है क्यों बिसारी
सूरत तेरी कन्हाई, नयनों में है समाई
हमसे सहा न जाये, तेरा वियोग भारी
घर बार मोह माया, सब त्याग हमहैं आर्इं
चन्दा सा मुख दिखा दो, विनती है यह हमारी
बंसी की धुन सुनादो, फिर प्रेम-रस पिला दो
‘ब्रह्मानंद’ हृदय हमारे, छाई छबि तुम्हारी