श्री वृन्दावन
सरस रस है वृन्दावन में
ग्यान ध्यान को मान न, रति-रस सरसत जन मन में
राधे राधे-कहहिं लग्यौ मन, राधा जीवन में
सबही को है सहज भाव, निजता को मोहन में
ललन-लली की लाली ही तो, छाई कन कन में
गोपी गोप मनहुँ प्रगटे नर-नारिन के तन में
प्रिय को नित्य विहार प्रिया को, प्यार जहाँ जन में
कैसो अद्भुत भाव भर्यौ या व्रज के जीवन में