वन से वापसी
वनतैं आवत श्रीगिरिधारी
सबहिं श्रवन दै सुनहु सहेली, बजी बाँसुरी प्यारी
धेनु खुरनि की धुरि उड़त नभ, कोलाहल अति भारी
गावत गीत ग्वाल सब मिलिकें, नाचत बीच बिहारी
मलिन मुखी हम निशि सम नारी, बिनु हरि सदा दुखारी
कृष्णचन्द्र ब्रजचन्द्र खिलें नभ, तब हम चन्द्र उजारी
मिटै ताप संताप तबहिं जब, दृष्टि परैं बनवारी
चलो चलें चित-चोर विलोकें, ठाढ़े कृष्ण मुरारी