श्री कृष्ण माधुर्य
कालिन्दी कमनीय कूलगत, बालु सुकोमल
ब्रज बाथिनि महँ बिछी रहे, बनिके तहँ निश्चल
तापै विहरत श्याम चरण, मनि नूपुर धारे
परम मृदुल मद भरे बजे, जहाँ जहाँ सुकुमारे
अब टक ब्रजरज मध्य में, अंकित जो पदचिन्ह हैं
तिनि चरननि वन्दन करौं, जो सबही तें भिन्न हैं
केशपाश अति सघन, वरन कारे घुँघरारे
मोर मुकुट तें कसे अलंकृत, प्यारे प्यारे
मन मोहन वर वेष जो, मम मन को मोहित करत
ताकूँ कब निरखूँ सतत्, दीठि ताहि खोजत फिरत
कैसे उपमा करें मधुर की, परम मधुर है
विग्रह प्रभु को सरस सबनि तें, मधुर मधुर है
मधुर बदन अरविन्द मधुर, तातें सुमधुर हैं
मन्द हँसनि गज चलनि, हँसनि सब मधुर-मधुर है
जाकी मादकता मधुर, सौरभ तातें भरित है
मन्द हँसनि चितवनि चलनि, मधुर-मधुर अति मधुर है