आत्म ज्ञान
हम तो एक ही कर के माना
दोऊ कहै ताके दुविधा है, जिन हरि नाम न जाना
एक ही पवन एक ही पानी, आतम सब में समाना
एक माटी के लाख घड़े है, एक ही तत्व बखाना
माया देख के व्यर्थ भुलाना, काहे करे अभिमाना
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, हम हरि हाथ बिकाना
आत्म ज्ञान
हम तो एक ही कर के माना
दोऊ कहै ताके दुविधा है, जिन हरि नाम न जाना
एक ही पवन एक ही पानी, आतम सब में समाना
एक माटी के लाख घड़े है, एक ही तत्व बखाना
माया देख के व्यर्थ भुलाना, काहे करे अभिमाना
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, हम हरि हाथ बिकाना