सत्संग महिमा
काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है
एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है
एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है
सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है
सत्संग महिमा
काहे को तन माँजता रे, माटी में मिल जाना है
एक दिन दूल्हा साथ बराती, बाजत ढोल निसाना है
एक दिन तो स्मशान में सोना, सीधे पग हो जाना है
सत्संगत अब से ही करले, नाहिं तो फिर पछताना है
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, प्रभु का ध्यान लगाना है