प्रगाढ़ प्रीति
मैं तो साँवरे के रँग राची
साजि सिंगार बाँधि पग घुँघरू, लोक-लाज तजि नाची
गई कुमति लई साधु की संगति, स्याम प्रीत जग साँची
गाय गाय हरि के गुण निस दिन, काल-ब्याल सूँ बाँची
स्याम बिना जग खारो लागत, और बात सब काँची
‘मीराँ’ गिरिधर-नटनागर वर, भगति रसीली जाँची