शरणागति
पिया इतनी विनती सुनो मोरी
औरन सूँ रस-बतियाँ करत हो, हम से रहे चित चोरी
तुम बिन मेरे और न कोई, मैं सरणागत तोरी
आवण कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी
‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी
शरणागति
पिया इतनी विनती सुनो मोरी
औरन सूँ रस-बतियाँ करत हो, हम से रहे चित चोरी
तुम बिन मेरे और न कोई, मैं सरणागत तोरी
आवण कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी
‘मीराँ’ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी