शरणागति
अब तो निभायाँ सरेगी, रख लो म्हारी लाज
प्रभुजी! समरथ शरण तिहारी, सकल सुधारो काज
भवसागर संसार प्रबल है, जामे तुम ही जहाज
निरालम्ब आधार जगत्-गुरु, तुम बिन होय अकाज
जुग जुग भीर हरी भक्तन की, तुम पर उनको नाज
‘मीराँ’ सरण गही चरणन की, पत राखो महाराज