भक्त के भगवान
हम भक्तन के, भक्त हमारे
सुन अर्जुन, परतिग्या मेरी, यह व्रत टरत न टारे
भक्तै काज लाज हिय धरिकैं, पाय-पियादे धाऊँ
जहँ-जहँ भीर परै भक्तन पै, तहँ-तहँ जाइ छुड़ाऊँ
जो मम भक्त सों बैर करत है, सो निज बैरी मेरो
देखि बिचारि, भक्तहित-कारन, हाँकत हौं रथ तेरो
जीते जीत भक्त अपने की, हारे हारि बिचारौं
‘सूरदास’ सुनि भक्त-विरोधी, चक्र सुदर्शन धारौ
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