धनुष भंग
जनक मुदित मन टूटत पिनाक के
बाजे हैं बधावने, सुहावने सुमंगल-गान
भयो सुख एकरस रानी राजा राँक के
दुंदभी बजाई, सुनि हरषि बरषि फूल
सुरगन नाचैं नाच नाय कहू नाक के
‘तुलसी’ महीस देखे दिन रजनीस जैसे
सूने परे सून से, मनो मिटाय आँक के
धनुष भंग
जनक मुदित मन टूटत पिनाक के
बाजे हैं बधावने, सुहावने सुमंगल-गान
भयो सुख एकरस रानी राजा राँक के
दुंदभी बजाई, सुनि हरषि बरषि फूल
सुरगन नाचैं नाच नाय कहू नाक के
‘तुलसी’ महीस देखे दिन रजनीस जैसे
सूने परे सून से, मनो मिटाय आँक के