राधा कृष्ण प्रीति
बलि बलि हौं कुँवरि राधिका, नन्दसुवन जासों रति मानी
वे अति चतुर, तुम चतुर-शिरोमनि, प्रीत करी कैसे रही छानी
बेनु धरत हैं, कनक पीतपट, सो तेरे अन्तरगत ठानी
वे पुनि श्याम, सहज तुम श्यामा, अम्बर मिस अपने उर आनी
पुलकित अंग अवहि ह्वै आयो, निरखि सखी निज देह सयानी
‘सूर’ सुजान सखी को बूझे, प्रेम प्रकास भयौ बिकसानी