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Jay Jay Jag Janani Devi
December 15, 2014
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पार्वती वन्दना जय जय जग-जननि देवि, सुर-नर-मुनि-असुर-सेवी भुक्ति-मुक्ति-दायिनि, भय-हरणि कालिका मंगल-मुद-सिद्धि-सदनि, पर्व शर्वरीश-वदनि ताप-तिमिर-तरुण-तरणि-किरण-पालिका वर्म-चर्म कर कृपाण, शूल-शेल धनुष बाण धरणि दलनि दानव दल रण
Bin Kaju Aaj Maharaj Laj Gai Meri
December 15, 2014
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द्रोपदी का विलाप बिन काज आज महाराज लाज गई मेरी दुख हरो द्वारिकानाथ शरण मैं तेरी दुःशासन वंश कठोर, महा दुखदाई खैंचत वह मेरो चीर
Kishori Tere Charanan Ki Raj Pau
December 15, 2014
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श्री श्री राधा महात्म्य किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊँ बैठि रहौं कुंजन की कोने, श्याम राधिका गाऊँ जो रज शिव सनकादिक लोचन, सो रज
Nirbal Ke Pran Pukar Rahe Jagdish Hare
December 15, 2014
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जगदीश स्तवन निर्बल के प्राण पुकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे साँसों के स्वर झंकार रहे, जगदीश हरे जगदीश हरे आकाश हिमालय सागर में, पृथ्वी
सम्मति पत्र -
भगवद्भक्त श्री श्यामलालजी तापड़िया,
सप्रेम नारायण स्मरण । भजन संग्रह का प्रकाशन अत्यन्त श्रेष्ठ कार्य है। सात्विक साहित्य का व्यापक प्रचार ही समाज को संस्कारी बना पाने में सक्षम है। प्राचीन संतों की वाणी में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत है। आपने उसे समाज को देकर उपकृत किया है। मेरी सादर शुभेच्छा स्वीकार करियेगा ।
श्री श्यामलालजी तापडिया ने "भजन भक्तिः " नाम से भजन संग्रह का सम्पादन किया है। इसमें प्राय: महापुरुषों के प्रेमोद्गार ही अक्षर रूप में ढले हुए हैं। भजन-स्तोत्र ये सब भगवान् की अक्षरमयी मूर्ति हैं। भगवान् के शरणागत होने के लिए उनका अनन्य भाव से चिन्तन करना चाहिए। इस प्रसंग में प्रस्तुत संकलन निस्संदेह मंगलमय प्रयास है।
कर्मनिष्ठ कवि श्री श्यामलालजी द्वारा रचित एवं संकलित 'भजनं-भक्तिः' समाज को उनके द्वारा दी जा रही ऐसी देन है जो सनातन भक्तों का मार्ग प्रशस्त करेगी । संगीतकारों को प्रेरित करेगी वहीं लोक-गायकों भक्ति भाव में वृद्धि करेगी ।
'भजनं भक्तिः' के परिवर्धित संस्करण के प्रकाशन पर उनको शुभकामनाओं के साथ साधुवाद देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। आशा है साहित्य जगत में भी इस संग्रह को ख्याति प्राप्ति होगी।
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